'वाह रे कॉर्पोरेटिव दुनिया'

स्वयं को स्थिर करता हुआ
अस्थिर सा होने लगा हूँ,
कहूँ तो किस से कहूँ,
कि अब मैं बीमार होने लगा हूँ।
दोष दूं भी तो किसे,
क्या कॉर्पोरेटिव दुनिया को?
नहीं, क्यूँ जो अब मैं इसी में सिमटने लगा हूं.
वाह रे कॉर्पोरेटिव दुनिया!!
तुझे मुबारकबाद देता हूं.
सुनहरे फूलों से सजा -
इक गुलदस्ता भेंट करता हूँ,
कि इतने बीमार लोगों में,
तूने मुझे बीमार बनाया.
घर की खाली थाली को
रोज़ी-रोटी सा भर बनाया.
घर की खाली थाली को भरता
मैं खुद खाली हो गया,
ना जाने तर्कशील बुद्धि का मारा
कब तेरा गुलाम हो गया...!!

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