"गुरु अर्जन देव जी की शहादत के पिछे छुपे ऐतिहासिक सच को उजागर करती, तत्ती तवी का सच"


आत्मजीत सिंह पंजाबी नाटक रचना क्षेत्र में अपना एक खास स्थान रखते हैं। उनके द्वारा लिखी एक महत्वपूर्ण किताब का नाम है तत्ती तवी का सच। इस ऐतिहासिक किताब रचना के लिए उन्हें 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। अभी तक यही समझा जाता था कि प्रिथिया (गुरु जी का बड़ा भाई ), चंदू (जहांगीर के दरबार में दीवान)जैसे पात्रों का हाथ था गुरु जी की शहादत के पिछे। लेकिन तस्वीर तब साफ होती है जब नाम आता है मुजदिद का। मुजदिद अपने आप को अल्लाह का पैरोकार कहलाता था एवं उसका प्रमुख उद्देश्य इस्लाम को कट्टरता से फैलाना था। इसके लिए वह अपने साथ फरीद बुखारी को भी मिला लेता है। फरीद बुखारी अकबर की फौज का सिपह सलार था व बाद में वह मीर मुर्तजा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
            अकबर सभी धर्मों का आदर करता था और गुरु अर्जन देव जी की भी। अकबर अपनी राजगद्दी पु़त्र जहांगीर को देने की बजाए अपने पौत्र खुसरो का देना चाहता था क्योंकि खुसरो की विचारधारा अकबर से मिलती थी। इसके लिए मुजदिद और बुखारी एक योजना के तहत जहांगीर से सौदा तय करते हैं कि वह उसकी राजगद्दी हथियाने में मदद करेंगे बशर्ते उसे भी उनके कहे अनुसार इस्लाम को कट्टरता से फैलाना होगा। राजगद्दी हथियाने के लोभ में जहांगीर अपने पुत्र खुसरो को मरवा देता है क्योंकि उसके विचार अपने दादा अकबर से मिलते थे। आगे चलकर साजिश के तहत मुजदिद और बुखारी ने बादशाह जहांगीर को यह कहकर चुगली की कि गुरु अर्जन देव जी ने खुसरो की मदद की थी, को शहीद करवाने की सलाह दी। 
            जहांगीर के आदेश अनुसार गुरु जी पर पाँच दिनों तक तत्ती तवी (गर्म तवी) पर गर्म-गर्म रेत जून के गर्म झूलसते माह में डाल कर शहीद कर दिया गया। प्रिथिया चाहता था कि गुरुगद्दी उसे मिले इसके लिए वह कई प्रकार की साजिशें भी करता है एक बार तो वह बादशाह अकबर के पास जाकर चुगली भी करता है कि वह एक ऐसी वाणी रचना कर रहे हैं जो मुस्लिमों के खिलाफ है कई बार उसने इस तरह की साजिशें करने की कोशिश की, गुरु जी के बेटे को भी मरवाने की कोशिश की। जबकि चंदु जो जहंागीर के दरबार में दीवान था चाहता था कि गुरु जीे के बेटे का विवाह उसकी बेटी के साथ हो जाए। पर संगत के कहने पर गुरु जी ऐसा नहीं करते। तो इस तरह से इन दोनों का विरोध गुरु जी के साथ तो था किंतु उनके सिद्धातों व विचारधारा के साथ नहीं था। इस तरह यह नाटक अपने एतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समेटता हुआ पर्दा उठाता है और प्रिथिया व चंदू केवल एक बहाना बन जाते हैं।


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