प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी द्वारा जब ‘‘मन
की बात’’ कार्यक्रम की शुरुआत की
गई थी तो ऐसा माना गया था कि यह जनता से संवाद कायम करने का एक अहम जरीया बनेगा।
क्योंकि लंबे समय से इसकी दरकार थी। जनता से संवाद कायम करने के लिए रेडियो जैसे
माध्यम को चुनना अपने आप में अनूठा कदम था क्योंकि इसकी पहुंच भारत के कौने-कौने
तक है। दूरवर्ती इलाके जहां पर इंटरनेट की पहुंच कम है वहां भी रेडियो के माध्यम
से लोग प्रधानमंत्री से जुड़ते हैं। 3
अक्तूबर 2014
से शुरु हुए इस प्रोग्राम का क्रम अभी भी जारी है।
यह अनूठा इसलिए है क्योंकि
प्रधानमंत्री हल्की-फुल्की बातों से सीधा-सीधा जनता से मुखातिब होते हैं। इसमें
व्यक्त किए जाने वाले विचार वह विचार होते हैं जो आम बहसों में उलझ कर रह जाते हैं
यूँ तो इन सभी विचारों का विश्लेषण मीडिया द्वारा देश के जाने माने विशेषज्ञों के
साथ मिलकर प्रसारित किया जाता है पर उसमें देश के प्रधानमंत्री की आवाज नहीं होती
हां यह ठीक है मीडिया से ठीक मुखातिबी उन्हें पसंद नहीं। पंसदीदा चैनलों को
साक्षात्कार देना इसका प्रमाण है,
इस
पर प्रश्न चिन्ह हो सकता है? पर
फिर भी कभी-कभी जब इसे सुनता हूं तो एक भीड़ भरी आबादी में जनता का हिस्सा प्रतीत
होता हूं।
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